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कोरोना काल में लोगों की सेवा करने वाले प्रसिद्ध समाजसेवी जितेंद्र सिंह शंटी हुए कोरोना से संक्रमित



कोरोना जैसी खरतनाक वैश्विक महामारी में मानवता की सेवा में समर्पित भाव से सेवारत प्रसिद्ध समाज सेवी भगत सिंह सेवादल के संस्थापक एवं पूर्व विधायक *जितेंद्र सिंह शंटी अपने जान की परवाह किए बिना लाखो जरूरत मंद लोगों की सेवा की। परन्तु दुःख की बात यह है कि आज वे खुद एवं उनके दोनों बच्चे  कोरोना संक्रमण से गंभीर रूप से जूझ रहें है। हम सब की ईश्वर से प्रार्थना है कि उन्हें जल्द से जल्द स्वस्थ करें।

कोरोना का कहर लगातार बढ़ता जा रहा है। अब ऐसे भी मामले सामने आ रहे हैं कि कोरोना से मौत के बाद अंतिम संस्कार तो दूर शव को देखने तक के लिए परिवार का कोई सदस्य सामने नहीं आ रहा है। ऐसे शवों को अंतिम स्थल तक पहुंचाने में का जिम्मा उठाया है शहीद भगत सिंह सेवा दल के संस्थापक और शाहदरा के पूर्व विधायक जितेंद्र सिंह शंटी ने। अपने बेटे ज्योत जीत के साथ वह प्रतिदिन चार से पांच ऐसे शवों को शव वाहनों में लेकर श्मशान घाट या कब्रिस्तान पहुंचते हैं। उनका अंतिम संस्कार करते हैं। इसके लिए किसी के परिवार से कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। संस्था के सात शव वाहन इस काम में लगे हुए हैं। अब तक लगभग 200 लोगों का अंतिम संस्कार संस्था की तरफ से किया जा चुका है।


 शहीद भगत सिंह सेवा दल पिछले 26 वर्षों से लोगों की सेवा में जुटा है। शव वाहन के साथ संस्था के कई एंबुलेंस निशुल्क लोगों की मदद कर रहे हैं। कोरोना का संक्रमण शुरू हुआ तो, लोगों ने संक्रमित लोगों की मदद करने का जिम्मा उठाया। जिला प्रशासन के आह्वान पर 21 मार्च को हमने इसकी शुरुआत की। तब कोरोना पीड़ित या संदिग्धों को जांच केंद्र या क्वारंटाइन सेंटर तक पहुंचाने के लिए एंबुलेंस लगाए गए थे। जो परिवार क्वारंटाइन में थे, उनके घर राशन पहुंचाने का काम शुरू किया गया।

कुछ दिनों पहले जब पता चला कि कई शव लावारिस अस्पतालों में पड़े हैं क्योंकि उनके परिवार का कोई सदस्य अंतिम संस्कार के लिए नहीं आ रहा है। ऐसे में सात शव वाहन इस काम में लगा दिए गए। आज पूरी दिल्ली में संस्था के शव वाहन चल रहे हैं। उन्होंने बताया कि एक शव के अंतिम संस्कार पर करीब साढ़े पांच हजार रुपये खर्च होते हैं, जो कि संस्था ही वहन करती है। शव को ढोने के अलावा पांच एंबुलेंस आज भी कोरोना संक्रमित या संदिग्ध लोगों को जांच केंद्र, कोविड केयर सेंटर या अस्पताल पहुंचाने में लगे हुए हैं।



अस्पताल की मोर्चरी से अंतिम संस्कार तक शव को ले जाने के दौरान कई तरह के एहतियात भी बरते जाते हैं। जितेंद्र सिंह शंटी ने बताया कि वह उनके बेटे सहित अन्य कर्मचारी पीपीई किट में शव को लेने के लिए पहुंचते हैं। शव को वाहन में डालते से पहले और बाद में अपने हाथों को सैनिटाइज करते हैं। हर शव को अंतिम स्थल तक पहुंचाने के बाद वाहन को पूरी तरह से सैनिटाइज किया जाता है।

लावारिस शव के लिए अस्पताल से कोरोना से मौत का प्रमाण पत्र लिया जाता है। अस्पताल से ही अंतिम संस्कार के लिए अधिकार पत्र भी ले लेते हैं। वहीं, जो परिवार सामने आते हैं उनसे एक फार्म भरवा लिया जाता है, जो हमें अंतिम संस्कार का अधिकार देता है। इसके साथ भी कोरोना से मौत का प्रमाण पत्र लिया जाता है।
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