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कभी कभी

कभी कभी हम कहना कुछ चाहते है और लोग कुछ समझ लेते है। कभी हम कह के  भी सामने वाले को समझा नहीं पाते इसलिए चुप रहना ही सही लगता है या यूँ  कहो की शब्द ही बाहर नहीं आ पाते।

कभी कभी अंदर बोहत बड़ा तूफ़ान चल रहा होता है पर उसके लिए शब्द ही नहीं मिलते तो कैसे बयां करें और किससे करें।  वो तूफ़ान फिर ख़त्म कैसे हो ??????? एक ही रास्ता बचता है वो हवा आंसू बनकर बाहर आ जाते है और वो सब बयान कर देते है जो शब्द नहीं कर सकते।

कभी कभी दिमाग के  किसी कोने में एक ऐसे दर्द का एहसास होता है जिसकी झलक कभी कभी आँखों से आंसू बहते हुए दिख जाती है पर उस दर्द की वजह कभी भी समझ ही नहीं आती। 

   
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