लोगों ने आराम किया और छुट्टी पूरी की
1 मई को भी मज़दूर ने मज़दूरी की
याद दिला दूँ 1 मई को labors day मनाया जाता है|
दिल बोहत दुःख रहा है आज| मेरे देश के मज़दूर के आंसू थम नहीं रहे हैं| उनके छिले हुए पैर मेरे आँखों के सामने से जा नहीं रहे हैं| उनके बच्चों की चिल्लाहट का शोर कानों में अभी भी गूँज रहा है| क्यों रो रहे हैं मेरे देश के मज़दूर| क्या आखिर मज़दूर मज़बूर बन ही गए हैं|
क्या कर रही है सरकार अरे भाई कहाँ गए 20 लाख करोड़ का पैकेज|
रोज़ मज़दूर अपने घर जाते हुए मर रहे हैं कोई ट्रैन के नीचे आकर तो कोई रोड एक्सीडेंट में| कोई भूख के कारण| ऐसे भी दिन आ गए हैं की लोगों को रोटी के लिए मरना पड़ रहा है| कौन से अच्छे दिन आये हैं ये देश के| ऐसे अच्छे दिन जिसका कोई सर है न पैर| ऐसे बनेगा भारत आत्मनिर्भर| जब उसके पास कुछ बचेगा ही नहीं तब बनेगा भारत आत्मनिर्भर|
मज़दूर रोज़ाना कई किलोमीटर अपने घर पोहचने के लिए पैदल चल रहा है| उनके लिए ना तो ट्रैन बस का इंतज़ाम करवाया जा रहा है प्रॉपर और ना ही खाने का बंदोबस्त| लेकिन सरकार तो कहती हैं की उन्होंने हज़ारों करोड़ मज़दूरों के लिए इंतज़ाम करवा रखा है| अभी हाल ही में स्मृति ईरानी ने कहा की उनकी सर्कार 3 महीने से 80 करोड़ घरों तक खाना पोहंचा रहे हैं|
अरे तो मै जानना चाहती हूँ की ये लोग कौन है हज़ारों लोग जो सड़कों पर खाने के लिए तरस रहे हैं रहने के ठिकाने के लिए तरस रहे हैं रोटी के लिए तरस रहे हैं| डंडे खा रहे हैं पैर छिलवा रहे हैं मर रहे हैं| राज्य सरकार नहीं आने देना चाहती लोगों को अपने राज्य में। .. केंद्र सरकार इनको अपने पास नहीं रख सकती इनके लिए रोटी का इंतज़ाम नहीं करवा सकती | तो क्या होगा अब इन मज़दूरों का| ऐसे ही मरेंगे ये| मरने दो| क्या जाता है सरकार का|
जीरो
अरे नहीं चाहिए करोड़ों रुपये का लोन.. बस इन गरीबों को खाना खिला दो और उनके घर पोहंचा दो.. क्या सर्कार को इनके आंसू नहीं दिख रहे हैं लोग मर रहे हियँ इधर उधर भटक रहे हैं लेकिन सरकार के कान में जून तक नहीं रेंग रही हैं|कब दर्द समझेगी सरकार गरीबों का| अरे यार ये तो गरीब हैं न इनका दर्द क्यों समझेंगी सर्कार| आप तो बस बड़े बड़े लोगों को लोन दिलवाइये और अपना बिज़नेस बढाईये| बड़े लोगों का कोई नुकसान नहीं होना चाहिए लेकिन ये गरीब मर भी जाये तो कोई बात नहीं|
मरने दो इन्हे| मरने दो इनके गोद में जो बच्चा है उसे भूख से | मरने दो उन मज़दूर और मज़बूरों को धुप में चला चलाकर|
गरीब यही न | गरीब के जान की कीमत क्या हो सकती है भाई| जीरो.. सिर्फ जीरो
और याद रखना अगर ये जीरो है तो हमारा भारत भी जीरो है जो इन गरीबों को बचा नहीं पा रहा है| मै जानती हूँ आपको बुरा लग रहा है लेकिन लगने दो क्यूंकि मुझे भी बुरा लग रहा है... बोहत बुरा|
याद रखना जीरो|
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